Login to make your Collection, Create Playlists and Favourite Songs

Login / Register
Kavi Ka Ghar | Ramdarash Mishra
Kavi Ka Ghar | Ramdarash Mishra

Kavi Ka Ghar | Ramdarash Mishra

00:01:52
Report
कवि का घर | रामदरश मिश्रगेन्दे के बड़े-बड़े जीवन्त फूलबेरहमी से होड़ लिए गएऔर बाज़ार में आकर बिकने लगेबाज़ार से ख़रीदे जाकर वेपत्थर के चरणों पर चढ़ा दिए गएफिर फेंक दिए गए कूड़े की तरहमैं दर्द से भर आयाऔर उनकी पंखुड़ियाँ रोप दींअपनी आँगन-वाटिका की मिट्टी मेंअब वे लाल-लाल, पीले-पीले, बड़े-बड़े फूल बनकरदहक रहे हैंमैं उनके बीच बैठकर उनसे सम्वाद करता हूँवे अपनी सुगन्ध और रंगों की भाषा मेंमुझे वसन्त का गीत सुनाते हैंऔर मैं उनसे कहता हूँ -जियो मित्रो !पूरा जीवन जियो उल्लास के साथअब न यहाँ बाज़ार आएगाऔर न पत्थर के देवता पर तुम्हें चढ़ाने के लिए धर्मयह कवि का घर है !

Kavi Ka Ghar | Ramdarash Mishra

View more comments
View All Notifications