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Naavein | Naresh Saxena
Naavein | Naresh Saxena

Naavein | Naresh Saxena

00:02:02
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नावें | नरेश सक्सेना नावों ने खिलाए हैं फूल मटमैलेक्या उन्हें याद है कि वे कभी पेड़ बनकर उगी थीं नावें पार उतारती हैंख़ुद नहीं उतरतीं पारनावें धार के बीचों-बीच  रहना चाहती हैंतैरने न दे उस उथलेपन को समझती हैं ठीक-ठीकलेकिन तैरने लायक गहराई से ज़्यादा के बारे मेंकुछ भी नहीं जानतीं नावेंबाढ़ उतरने के बाद वे अकसर मिलती हैंछतों या पेड़ों पर चढ़ी हुईं नावें डूबने से डरती हैंभर-भर कर खाली होती रहती हैं नावेंसुनसान तटों पर चुपचापखूँटों से बँधी रहती हैं नावें।

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