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Rishtedari | Laxmishankar Vajpeyi
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Rishtedari | Laxmishankar Vajpeyi

00:02:11
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रिश्तेदारी | लक्ष्मीशंकर वाजपेयीनहीं, यह भी संभव नहीं होताकि उनके शहर जाकर भीजाया ही न जाय रिश्तेदारों के घरअकसर कुछ एहसान लदे होते हैंउनके बुज़ुर्गों  के अपने बुज़ुर्गों  परऐसा कुछ न भी हो, तोज़रूरी होता है लोकाचार निभानाकिंतु अकसर खड़ी हो जाती है समस्याकि पत्नी की कुशलक्षेम, बच्चों कीसुचारू पढ़ाई का विवरण दे देनेतथा ’और क्या हाल-चाल हैं‘ का कई-कई बारउत्तर दे देने के बाद,कैसे जारी रखा जाय संवादअकसर बोझिल हो जाते हैंचाय आने के बीच के क्षण,और अकसर देर लगती है चाय आने मेंक्योंकि उधर से भी रिश्तेदारी निभाने के प्रयासप्रकट होते हैं चाय के साथ की सामग्री बनकरचाय के बाद बनती है कुछ राहत की स्थितिकि अब कुछ देर बादमाँगी जा सकती है आज्ञाऔर खाना खाकर जाने की मनुहार परकुछ बहाने बनाकरउठा जा सकता है कुछ औपचारिक संबोधनोंतथा फिर मिलने-जुलनेया चिट्ठी लिखने के वादों के साथ!

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