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Rishta | Anamika
Rishta | Anamika

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रिश्ता | अनामिकावह बिल्कुल अनजान थी!मेरा उससे रिश्ता बस इतना थाकि हम एक पंसारी के गाहक थेनए मुहल्ले में!वह मेरे पहले से बैठी थी-टॉफी के मर्तबान से टिककरस्टूल के राजसिंहासन पर!मुझसे भी ज़्यादाथकी दिखती थी वहफिर भी वह हँसी!उस हँसी का न तर्क था,न व्याकरण,न सूत्र,न अभिप्राय!वह ब्रह्म की हँसी थी।उसने फिर हाथ भी बढ़ाया,और मेरी शॉल का सिरा उठाकरउसके सूत किए सीधेजो बस की किसी कील से लगकरभृकुटि की तरह सिकुड़ गए थे।पल भर को लगा-उसके उन झुके कंधों सेमेरे भन्नाये हुए सिर काबेहद पुराना है बहनापा।
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