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Berozgaar Hum | Shanti Suman
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Berozgaar Hum | Shanti Suman

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बेरोज़गार हम / शांति सुमनपिता किसान अनपढ़ माँबेरोज़गार हैं हमजाने राम कहाँ से होगीघर की चिन्ता कमआँगन की तुलसी-सी बढ़तीघर में बहन कुमारीआसमान में चिड़िया-सीउड़ती इच्छा सुकुमारीछोटा भाई दिल्ली जाने का भरता है दम ।पटवन के पैसे होतेतो बिकती नहीं ज़मीनऔर तकाज़े मुखिया केले जाते सुख को छीनपतले होते मेड़ों पर आँखें जाती है थम ।जहाँ-तहाँ फटने को हैसाड़ी पिछली होली कीझुकी हुई आँखें लगती हैंअब करुणा की बोली सीसमय-साल ख़राब टँगे रहते बनकर परचम ।

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