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Itna Mat Door Raho Gandh Kahin Kho Jaye | Girija Kumar Mathur
Itna Mat Door Raho Gandh Kahin Kho Jaye | Girija Kumar Mathur

Itna Mat Door Raho Gandh Kahin Kho Jaye | Girija Kumar Mathur

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इतना मत दूर रहो गन्ध कहीं खो जाए | गिरिजाकुमार माथुरइतना मत दूर रहोगन्ध कहीं खो जाएआने दो आँचरोशनी न मन्द हो जाएदेखा तुमको मैंने कितने जन्मों के बादचम्पे की बदली सी धूप-छाँह आसपासघूम-सी गई दुनिया यह भी न रहा यादबह गया है वक़्त लिए मेरे सारे पलाशले लो ये शब्दगीत भी कहीं न सो जाएआने दो आँचरोशनी न मन्द हो जाएउत्सव से तन पर सजा ललचाती मेहराबेंखींच लीं मिठास पर क्यों शीशे की दीवारेंटकराकर डूब गईं इच्छाओं की नावेंलौट-लौट आई हैं मेरी सब झनकारेंनेह फूल नाज़ुक न खिलना बन्द हो जाएआने दो आँचरोशनी न मन्द हो जाए.क्या कुछ कमी थी मेरे भरपूर दान मेंया कुछ तुम्हारी नज़र चूकी पहचान मेंया सब कुछ लीला थी तुम्हारे अनुमान मेंया मैंने भूल की तुम्हारी मुस्कान मेंखोलो देह-बन्धमन समाधि-सिन्धु हो जाएआने दो आँचरोशनी न मन्द हो जाएइतना मत दूर रहोगन्ध कहीं खो जाए

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