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Vaapsi | Ashok Vajpeyi
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00:02:37
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वापसी | अशोक वाजपेयी जब हम वापस आएँगेतो पहचाने न जाएँगे-हो सकता है हम लौटेंपक्षी की तरहऔर तुम्हारी बगिया के किसी नीम पर बसेरा करेंफिर जब तुम्हारे बरामदे के पंखे के ऊपरघोसला बनाएँतो तुम्हीं हमें बार-बार बरजो !या फिर थोड़ी-सी बारिश के बादतुम्हारे घर के सामने छा गई हरियाली की तरहवापस आएँ हमजिससे राहत और सुख मिलेगा तुम्हेंपर तुम जान नहीं पाओगे किउस हरियाली में हम छिटके हुए हैं !हो सकता है हम आएँपलाश के पेड़ पर नई छाल की तरहजिसे फूलों की रक्तिम चकाचौंध मेंतुम लक्ष्य भी नहीं कर पाओगे !हम रूप बदलकर आएँगेतुम बिना रूप बदले भीबदल जाओगे-हालांकि घर, बगिया, पक्षी-चिड़ियाहरियाली-फूल-पेड़ वहीं रहेंगेहमारी पहचान हमेशा के लिए गड्डमड्ड  कर जाएगावह अंतजिसके बाद हम वापस आएँगेऔर पहचाने न जाएँगे।

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