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Koi Ummeed Bar Nahi Aati | Mirza Ghalib
Koi Ummeed Bar Nahi Aati | Mirza Ghalib

Koi Ummeed Bar Nahi Aati | Mirza Ghalib

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कोई उम्मीद बर नहीं आती। मिर्ज़ा ग़ालिबकोई उम्मीद बर नहीं आतीकोई सूरत नज़र नहीं आतीमौत का एक दिन मुअ'य्यन हैनींद क्यूँ रात भर नहीं आतीआगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसीअब किसी बात पर नहीं आतीजानता हूँ सवाब-ए-ताअत-ओ-ज़ोहदपर तबीअत इधर नहीं आतीहै कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँवर्ना क्या बात कर नहीं आतीक्यूँ न चीख़ूँ कि याद करते हैंमेरी आवाज़ गर नहीं आतीदाग़-ए-दिल गर नज़र नहीं आताबू भी ऐ चारा-गर नहीं आतीहम वहाँ हैं जहाँ से हम को भीकुछ हमारी ख़बर नहीं आतीमरते हैं आरज़ू में मरने कीमौत आती है पर नहीं आतीका'बा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'शर्म तुम को मगर नहीं आती

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