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Aurat Ko Chahiye Thi | Adiba Khanum
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Aurat Ko Chahiye Thi | Adiba Khanum

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औरत को चाहिए थी महज़ एक जेब। अदीबा ख़ानमऔरत को चाहिए थी महज़ एक जेबउसमें चन्द खनकते सिक्केजिनके के बल पर आज़ाद करने थेकुछ ऐसे पंछीजो पीढ़ी दर पीढ़ीकिसी महान षडयंत्र के तहतहोते आए थे क़ैद चाभियाँ पल्लू में बाँधनहीं भाता उन्हें रानियों का स्वाँगउन चाभियों ने बन्द कर रखे हैंकई क़ीमती संदूकजिनमें बन्द हैंख़ुद रानियाँ हीधूल फाँक रहीं गहनों कीकिसी हीरे किसी मोती की चमकनहीं कर रही उनके जीवन में उजालाउजाले के लिए उन्हेंनिकलना होगा इन क़ीमती  संदूकों से बाहररगड़ने होंगे तलवे जलती मिट्टी परक्योंकिइस रगड़ से ही बनते हैंरोशन सिक्केजिनकी चमक से बदल जाता हैंउस आदमी का लहज़ा जो कहता हैकि घर में पड़ी औरत मुफ़्त तोड़ती है रोटियाँदरअसल तुमने थमा दी औरत को चाभियाँबना दिया उन्हें रानीयांकेवल इसलिएकि तुम्हेंऔरत के पैर की रगड़ से निकलेसिक्कों से डर लगता हैकि तुम्हें औरत की जेब से डर लगता है।

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