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Baat Ki Baat | Shivmangal Singh Suman
Baat Ki Baat | Shivmangal Singh Suman

Baat Ki Baat | Shivmangal Singh Suman

00:04:19
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बात की बात । शिवमंगल सिंह ‘सुमन’इस जीवन में बैठे ठाले ऐसे भी क्षण आ जाते हैंजब हम अपने से ही अपनी बीती कहने लग जाते हैं।तन खोया-खोया-सा लगता मन उर्वर-सा हो जाता हैकुछ खोया-सा मिल जाता है कुछ मिला हुआ खो जाता है।लगता; सुख-दुख की स्मृतियों  के कुछ बिखरे तार बुना डालूँयों ही सूने में अंतर के कुछ भाव-अभाव सुना डालूँकवि की अपनी सीमाऍं है कहता जितना कह पाता हैकितना भी कह डाले, लेकिन-अनकहा अधिक रह जाता हैयों ही चलते-फिरते मन में बेचैनी सी क्यों उठती है?बसती बस्ती के बीच सदा सपनों की दुनिया लुटती हैजो भी आया था जीवन में यदि चला गया तो रोना क्या?ढलती दुनिया के दानों में सुधियों के तार पिरोना क्या?जीवन में काम हज़ारों हैं मन रम जाए तो क्या कहना!दौड़-धूप के बीच एक-क्षण, थम जाए तो क्या कहना!कुछ खाली खाली होगा ही जिसमें निश्वास समाया थाउससे ही सारा झगड़ा है जिसने विश्वास चुराया थाफिर भी सूनापन साथ रहा तो गति दूनी करनी होगीसाँचे के तीव्र-विवर्तन से मन की पूनी भरनी होगीजो भी अभाव भरना होगा चलते-चलते भर जाएगापथ में गुनने बैठूँगा तो जीना दूभर हो जाएगा।

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