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Main Aur Main | Saqi Farooqi
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Main Aur Main | Saqi Farooqi

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मैं और मैं! | साक़ी फ़ारुक़ीमैं हूँ मैंवो जिस की आँखों में जीते जागते दर्द हैंदर्द कि जिन की हम-राही में दिल रौशन हैदिल जिस से मैं ने इक दिन इक अहद (प्रतिज्ञा) किया थाअहद कि दोनों एक ही आग में जलते रहेंगेआग कि जिस में जल कर जिस्म हुआ ख़ाकिस्तर (राख)जिस्म कि जिस के कच्चे ज़ख़्म बहुत दुखते थेज़ख़्म कि जिन का मरहम वक़्त के पास नहीं हैवक़्त कि जिस की ज़द में सारे सय्यारे हैंसय्यारे (ग्रह) जो क़ाएम हैं अपनी ही कशिश परऔर कशिश के ताने-बाने टूट चले हैंकौन तमाशाई है? मैं हूँ ... और तमाशामैं हूँ मैं!

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