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Lai Taal | Kailash Vajpeyi
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लयताल।कैलाश वाजपेयीकुछ मत चाहोदर्द बढ़ेगाऊबो और उदास रहो।आगे पीछेएक अनिश्चयएक अनीहा, एक वहमटूट बिखरने वाले मन केलिए व्यर्थ है कोई क्रमचक्राकार अंगार उगलतेपथरीले आकाश तलेकुछ मत चाहो दर्द बढ़ेगाऊबो औरउदास रहोयह अनुर्वरा पितृभूमि हैधूपझलकती है पानीखोज रही खोखलीसीपियों मेंचाँदी हर नादानी।ये जन्मांध दिशाएँ देंआवाज़तुम्हें इससे पहलेरहने दोविदेह ये सपनेबुझी व्यथा को आग न दोतम के मरुस्थल में तुममणि से अपनीयों अलगाएजैसे आग लगे आँगन मेंबच्चा सोया रह जाएअब जब अनस्तित्व की दूरीनाप चुकीं असफलताएँयही विसर्जन कर दोयह क्षणगहरे डूबो साँस न लोकुछ मत चाहोदर्द बढ़ेगाऊबो औरउदास रहो

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